हासील-ए-ज़िन्दगी हसरतों के सिवा कुछ भी नही
ये मिला नही, वो किया नही, ये हुआ नही, वो रहा नही
ख्वाईश मनुश्य को जीने नहीं देती अौर
मनुश्य ख्वाईश को मरने नहीं देता
फुरसत में करेंगे हिसाब तुझसे ए ज़िन्दगी,
उलझे हुए हैं हम अभी, खुद को ही सुलझाने में
मरने से पहले एक बार खुल के जी लेना…
इसी को कहते हैं ज़िन्दगी से इश्क कर लेना…
हर रिश्ते का नाम ज़रूरी नहीं होता..
कुछ बेनाम रिश्ते रुकी जिंदगी को सांस देते हैं..