आशिकी में तेरी बीता, वो फ़साना याद है,
तेरी उल्फत का मुझे, गुज़रा ज़माना याद है।
कब मिले, कैसे मिले, कुछ नहीं है याद अब,
तीर जो दिल पर लगा था वो निशाना याद है।
मेरे लाख कहने पर भी फ़ोन ना रखना तेरा,
मेरी ज़िद के चलते तेरा,रूठ जाना याद है।
कौन लगता हूं मैं तेरा, पूछता है जब ये तू,
शर्म से मेरा लजाकर, मुस्कुराना याद है।
क्या ख़बर थी ये”हिना”को,ज़िंदगी बन जाएगा वो,
मुझको तो बस बेखुदी में, दिल लगाना याद है।