अब भी आसमान पर छाई है ये काली घटाएँ
चाँद और सूरज भी जा छुपा है इन बादलों के साये।।
किसान भी थक गए कर भगवान से गुजारिश,
कब तक थाम जाये ये बीन मौसम का बारिश ।।
ए-ख़ुदा नुकसान मेरा, दुःखी मैं, फिर भी रोये तू जा रहा है,
किसान के आंसुओ को इन बारिशो के जरिये चुपाये क्यों जा रहा है।।
मैं अब तक नहीं समझा,
कैसी ये बरखा, कैसी ये रैन है,
ये प्रकृति या फिर इंसानी देन है??
~आशुतोष ज. दुबे