कर्म से ही इंसान को पहचान मिलती है
नाम तो लाखों लोगों के एक जैसे होते है
- Pehchan Shayari
*इंसान” की पहचान “अदब”* *से होती है “इल्म” से नहीं
*क्योंकि*
*”इल्म” तो शैतान के पास भी था, पर वह अदब से महरूम था
- Pehchan Shayari
खुद को जान ले ए इंसान
खुद को पेहचान ले इंसान
कर खुदी को कर इतना बुलंद
के हर कोई खुद तुझको पहचान ले।।
- Pehchan Shayari
सुना है वो अपनी नकली पहचान लिए फिरते है…
इंसान के भेष में वो शैतान लिये फिरते है !
हम क्या किसी को पहचानेगे…..
हम तो खुद ही पीठ पे वार लिये फिरते है !
सुना है बिक गया है वो शख्स थोड़े से लालच में…
जो अक्सर कहा करता था महफिल में सुनों हम ईमान लिये फिरते है !
चलो चलते है किसी पेड़ पर लटकने…
हम अपने साथ किसान लिये फिरते है !
खुशी तो कभी देखी ही नही हमने…
हम तो बस गमों की शाम लिये फिरते है !
और सुनो जो कहता है कि ना मैं तुम्हारा मददगार हूं…
वो ही असल में दोगले किरदार लिये फिरते है !
बुरा नही किया कभी किसी का कस़म से…
तभी तो बुजुर्गो की दुआये लिये फिरते है !
और देखो कभी छोड़ना नही मुझे दोस्तो..
कुछ नही है हम तुम्हारे सिवा…
हम तो बस तुम्हारी ही पहचान लिये फिरते है…!!!…
– मगन
- Pehchan Shayari
लब कुछ भी कहें, इससे हक़ीकत नहीं खुलती
इंसान के सच झूठ की पहचान हैं आँखें
- Jhoot Shayari, Pehchan Shayari