बङी देर कर दी उसने मेरा दिल ताेङने में,
ना जाने कितने शायर मुझसे आगे निकल गये।
वो मेरा हमसफर भी था
वो मेरा रहगुज़र भी था
मंजिलें ही एक न थी
दरमियाॉ ये फासला भी था
सच कहा था किसी ने तन्हाई में जीना सीख लो
मोहब्बत जितनी भी सच्ची हो साथ छोङ ही जाती है
कहने को कितने चेहरे थे मेरे आस पास…
हकीकत से मैं अकेला ही रूबरू हुआ…
तू भी मिलता है तो मतलब से ही अब,
लग गए तुझको भी सब रोग, ज़माने वाले
Andhere ke buna roshani ka vajood kha h…
Dhukh ke bina khusi ka ahshas kha h..
Or tmhare bina jindigi me tanhai ke alawa kya hh