जमाना खिलाफ हो तो क्या फर्क पड़ता है
हम तो ज़िन्दगी आज भी अपने अंदाज में जीते है।
- Zamana Shayari
इतना मत अकङ पगली जितना तेरी अकेली का वजन है,
उतने रुपिए की Gold Flake तो रोज़ अने दोस्तों को पिला दिया करते है
तेरे ज़र्फ़ को पहचान कर दूँगी जवाब।
तू मेरे क़द के बराबर सवाल तो कर ।।
ज़र्फ़ – समार्थ्य
- Pehchan Shayari
पगली वो ज़माने गए जब तेरे पीछे मरा करता था मै,
अब तो वो ज़माने हैं, जब मेरे पीछे तेरे जैसी 36 मरा करती है
मेरा मिज़ाज गुरुर नहीं, पहचान है मेरी….
जो ना समझ सको तो, किनारा बेहतर है…
– ss
- Pehchan Shayari