परख से परे है …
ये शख्सियत मेरी…
मैं उन्हीं के लिये हूं….
जो समझे कदर मेरी…
होने दो तमाशा मेरी भी ज़िन्दगी का
मैने भी मेले मे बहुत तालियां बजाई हैं…
बङी खोखली है आदमी की ज़रुरते
पूरी नही होती तो गुस्से से ढेर हो जाती है
कैसे कह दूँ कि थक गया हूँ मैं
न जाने किस – किस का हाैसला हूँ मैं।
चुप रहना भी एक तहज़ीब है संस्कारों की
लेकिन कुछ लोग हमें बेजुबां समझ बैठते हैं