कुछ बातों को करीने से लगाकर,
वो जाता है अक़्सर मुझे बहलाकर ।
कीमती हैं मेरे पास यादें तुम्हारी
इनको रखा है त़ह पे त़ह लगाकर ।
खोज़ना है किसी अपने को पर
गया है वो चेहरे पे चेहरा लगाकर ।
बेगाना तो नहीं पर कैसे कहूं अपना,
जो गया है मुझे अजनबी बनाकर ।
-सीमा ‘सदा’