बेटी जाने को जाएगी,
सूना आँगन कर जाएगी|
उड़कर बाबुल के पिंजड़े से,
अपना नव नीड़ बसाएगी|
मिल जाएगा प्यारा साथी,
जो उसके नाज़ उठाएगा|
नव वसंत के मौसम से,
उसका जीवन खिल जाएगा|
पर, माता की सूनी चौखट,
बचपन की गाथा गाएगी|
बेटी जाने को जाएगी……….
बिस्तर के सिलवट रोएँगे,
हर पल वह सीधा करती थी|
थी रसोई खुश हो जाती,
जब पाँव वो अपने धरती थी|
सींक में बरतन की खरखर,
आनंद न वह दे पाएगी|
बेटी जाने को जाएगी……….
मौन बहन, भाई उदास,
जो उधम मचाया करते थे|
माँ का दुलार किस पर ज्यादा,
इस मसले पर जो लड़ते थे|
इन छोटे-मोटे झगड़ों की,
अब नौबत ना आ पाएगी |
बेटी जाने को जाएगी……….
लड़कर माँ से, पिता से छिपकर,
पोशाक का ऑर्डर देती थी|
ऑनलाइन मँगवाती थी,
पैसे तो ठग ही लेती थी|
वह अनुशासित होकर अब से,
अपना संसार चलाएगी|
बेटी जाने को जाएगी……….
हँसेगी माँ या रोएगी,
पर आँसू से तन धोएगी|
पिता बिलख धीरज देंगे,
वह उसकी याद संजोएगी|
लेकिन यह धीरज कैसे,
माँ बेचारी रख पाएगी?
बेटी जाने को जाएगी……….
सूना आँगन कर जाएगी…….
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✍ ओम प्रकाश ‘ओम’
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