सियासत के फ़रिश्तों से अगर आज़ाद हो जाए।
तो ये कश्मीर जन्नत की तरह आबाद हो जाए।।
है जिनके हाथ में पत्थर, क़िताबें दे के तो देखो।
सबक़ कुछ अम्न का उनको भी शायद याद हो जाए।।
गँवारा है नहीं तुमको मेरा दैर -ओ- हरम आना।
तो फिर तुम मय-कदा आओ के कुछ इरशाद हो जाए।।
उड़े जब से परिन्दे हैं, नहीं लौटे हैं पेड़ों पर।
वो लौटें फिर से, कोई रास्ता ईजाद हो जाए।।
कयादत करने वालों को ‘अकेला’ ये खबर कर दो।
तुम्हारी नातवानी से न सब बरबाद हो जाए।।
– अकेला इलाहाबादी