बिन सफ़र, बिन मंज़िलों का
एक रास्ता होना चाहता हूॅ
कहीं दूर किसी जंगल में,
ठहरा दरिया होना चाहता हूॅ
एक ज़िंदगी होना चाहता हूॅ
बिना रिश्तों अौर रिवाज़ों की
दूर आसमान से गिरते,
झसने में कहीं खोना चाहता हूॅ
मैं आज मैं होना चाहता हूॅ
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उसके चेहरे की चमक के सामने सब सादा लगा
आसमान पे चाँद पूरा था मगर आधा लगा
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यूँ जमीन पर बैठकर क्यूँ
आसमान देखता है…?
पाँखों को खोल जमाना
सिर्फ उड़ान देखता है…?
लहरों की तो फितरत है
शोर मचाने की….?
मंजिल उसी की होती है जो
नज़रों में तूफान देखता है…?
सुप्रभात
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घबरा के आसमान की तरफ देखते हैं लोग,
जैसे खुदा ज़मीन पर मौजूद ही न हो ।
- Khuda Shayari, आसमान शायरी
अब भी आसमान पर छाई है ये काली घटाएँ
चाँद और सूरज भी जा छुपा है इन बादलों के साये।।
किसान भी थक गए कर भगवान से गुजारिश,
कब तक थाम जाये ये बीन मौसम का बारिश ।।
ए-ख़ुदा नुकसान मेरा, दुःखी मैं, फिर भी रोये तू जा रहा है,
किसान के आंसुओ को इन बारिशो के जरिये चुपाये क्यों जा रहा है।।
मैं अब तक नहीं समझा,
कैसी ये बरखा, कैसी ये रैन है,
ये प्रकृति या फिर इंसानी देन है??
~आशुतोष ज. दुबे
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