कीमत तो खूब बड़ गई शहरों मे धान की
बेटी विदा न हो सकी फिर भी किसान की
– Vikash
- किसान पर शायरी, बेटी पर शायरी कविता
लोग कहते हैं बेटी को मार डालोगे,तो बहू कहाँ से पाओगे?
जरा सोचो किसान को मार डालोगे, तो रोटी कहाँ से लाओगे?
Daring Khan Khan
- किसान पर शायरी, बेटी पर शायरी कविता
भू,धरतल को खींच-सींच
ज्यों अन्न अनाज उपजाए
तपती धूप न देखी थी
जब सूर्य आग बरसाए
हक़ मेरी थारी का क्यों
हर वर्ष ही मारा जाए
तन के पानी से सींचा था
हर दिन यु घुट-घुट जीता था
जाने क्या होगा जीवन में
ये सोच-सोच मर जाए
फटे वस्त्र,सूखा शरीर
मिट्टी में लिपटा जाए
जिस बूँद की आस लिए मन में
आके वह प्रलय मचाए
हार के इक दिन जीवन से
वह फन्दा गले लगाए
वह फन्दा गले लगाए।
– नीलम सिंह
- किसान पर शायरी
मेरे देश के किसान को,
पुंजी वादी, बिचौलीयो ने,
कई तरह से लुटा तो,
उसका दुपट्टा रह गया फटा ၊
लिखी गई कहानी,किताबे,
फटे दुपट्टे पर, फिल्म वालों ने,
पैसा कमाया झोली भर भर कर ၊
राजनेता ने बनाया महल,
उसके आंदोलन पर ၊
उसका मिट्टी का मकान,
नही बन पाया सीमेंट का घर ၊
किसान की बेटी, जो बारीश में,
भीगी हुई फटी चुनरी संभालते,
बोती है धरती में बीज ၊
अंकुरीत होने के लिए ၊
सबको जीवन देने के लिए ၊
उसी चुनरी से खत्म करती जीवन
၊
किसान पैसा जुटा न पाता शादी के लिए ၊
किसान का बेटा,
बुआयी के बाद, फटा पायजमा,
संभालते हुए, करता इंतज़ार ၊
नई फसल का, नये पायजामे का ၊
शिक्षक बनने के लिए फिस का,
लेकिन,
पुंजी वादी, बिचौलीयो ने,
इस तरह से लुटा तो,
उसका पायजामा रह गया फटा ၊
किसान की घरवाली,
चुपचाप देखती है,
कभी फटी घर की छत की ओर,
कभी, अपनी फटी साडी की ओर ၊
कभी फटी बेटी की चुनरी ၊
कभी फटा पायजामा,कभी दुपट्टा ၊
नई उम्मीद , नया धागा,
लेकर करती है कोशिश ၊
फटे को सिलाने की ၊
करती इंतजार,
अगली बारीश का,अगली फसल का …
– प्रदीप सहारे
- किसान पर शायरी
मुल्क मे जो सब से ज्यादा परेशान है
उसी मेरे भाई का नाम किसान है
-नदीम अहमद फ़ाइज़
- किसान पर शायरी